Contract

ठेका

  • दो या दो से अधिक पार्टियों के मध्य किसी भी विधि सम्मत उद्देश्य को पूरा करने के लिए विधि मान्य करार ठेका(Contract) कहलाता है।
  • ठेके के प्रकार को उनकी प्रकृति के अनुसार दो भाग में विभाजित किया जा सकता है:-
    1. निर्माण कार्य के ठेके(Works Contract)-यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते है:-
      • एक मुश्त ठेके(Lumpsum Contact)
      • अनुसूचित ठेके(Scheduled Contact)
      • फुटकर ठेके(Piece Work Contact)
    2. भंडार आपूर्ति के ठेके-यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते है:-
      • दर संविदा(Rate Contract)
      • चालू संविदा(Running Contact)
      • सुपुर्दगी संविदा(On Delivery Contract)

  • ऐसा ठेका जिसमें ठेकेदार निर्माण कार्य समान सुपुर्दगी की एक निश्चित अवधि में निर्धारित कुल धनराशि का(जिसे एकमुश्त राशि कहते हैं) का कार्य करने या आपूर्ति करने का दायित्व लेता है एक मुश्त ठेका कहलाता है।
  • ऐसा ठेका जिसके अंतर्गत ठेकेदार यथा विनिर्दिष्ट कार्य सामान की आपूर्ति एक नियत अवधि में और उस कार्य या समान की विभिन्न मदों में प्रत्येक के लिए नियत इकाई दरों पर करता है उसे अनुसूचित ठेका कहते हैं।
  • वह ठेका जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य या समान की आपूर्ति केवल यूनिट दरों के कीमतों के बारे में ही करार किया जाता और ठेका दिया जाता है ठेका दिया जाता है लेकिन इस बात का जिक्र नहीं किया जाता की कुल कितना निर्माण कार्य या सामान सप्लाई किया जाना है या कितनी अवधि में किया जाना है उसे फुटकर ठेका कहलाता है। उदाहरण क्षेत्रीय ठेके(Zonal Contact)।
  • ऐसा ठेका जिसमें ठेकेदार निर्धारित अवधि के दौरान बिना मात्रा की अपेक्षा के स्थिर दर या मूल्य पर मांग के प्राप्त होने के बाद निश्चित अवधि में देता है उसे दर ठेका कहलाता है।
  • ऐसा ठेका जिसकी अवधि के दौरान ठेकेदार माल की एक निश्चित मात्रा निश्चित दर या मूल्य पर मांग के प्राप्त होने पर निश्चित अवधि में सप्लाई करता है उसे चालू  ठेका कहते हैं।
  • ऐसा ठेका जिसके अंतर्गत ठेकेदार माल की एक निश्चित मात्रा एक निश्चित तिथि को सुपुर्द करने के लिए जिम्मेदार होता है उसे  सुपुर्दगी ठेका कहते हैं।
  • सुपुर्दगी ठेका केवल उन्हीं वस्तुओं के प्राप्त करने के लिए किया जाता है जिनके के मूल्य में बहुत अधिक कमी बेशी होने की संभावना होती है।
  • ठेकेदारों को ठेके के विशेष शर्तों के अधीन निम्न अग्रिम दिए जा सकते हैं:-
    • जुटाव अग्रिम(Mobilization Advance)
    • मशीन और उपस्कर के लिए अग्रिम राशि(Advance against Machinary and Equipment)
    • संविदा के निष्पादन के दौरान निर्माण कार्यों की प्रगति में तेजी लाने के लिए अग्रिम(Advance for accelerating progress of work during execution of contract)
    • आपवादिक मामलों में अग्रिम(Advance in exceptional cases)
  • जुटाव अग्रिम संविदा मूल्य का 10%(5% के दो चरण में) दिया जाता है।
  • जुटाव अग्रिम के पहले चरण में संविदा करार पर हस्ताक्षर करने पर संविदा मूल्य का 5 % अग्रिम दिया जाता है।
  • जुटाव अग्रिम के दूसरे चरण में स्थल कर्मचारियों , कार्यालय स्थापित करने, उपस्कर लाने और निर्माण कार्य को वस्तुतः प्रारंभ करने पर  संविदा मूल्य का 5 % अग्रिम दिया जाता है। 
  • मशीन और उपस्कर अग्रिम ठेका मूल्य का 10% या मशीन और उपस्कर के मूल्य का 75 % जो कम हो दिया जाता है नई मशीन और उपस्कर खरीदने हेतु।
  • संविदा के निष्पादन के दौरान निर्माण कार्यों की प्रगति में तेजी लाने के लिए संविदा के मूल्य का अधिकतम 5% अग्रिम महाप्रबंधक द्वारा संबद्ध प्रमुख वित्त के परामर्श से मुख्य इंजीनियर प्रभारी ( PCE) की सिफारिशों पर मंजूर किया जाएगा ।
  • आपवादिक मामलों में 25 करोड़ से कम मूल्य के संविदा पर अधिकतम 20 लाख रुपए महाप्रबंधक द्वारा अग्रिम स्वीकार किया जा सकता है यदि वे प्रभारी मुख्य इंजीनियर (PCE)द्वारा संस्तुत और सम्बद्ध वित्त के परामर्श से (PFA)प्रत्येक स्थिति में गुण दोष की परिस्थितियों पर नजर रखते हुए परम आवश्यक समझते हो।
  • ठेकेदारों को दी जाने वाली अग्रिमों पर ब्याज देय होगा जो कि (ब्याज की दर) रेलवे बोर्ड द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में सूचित कर दिया जाएगा जो कि उस वित्तीय वर्ष में खोले गए निविदाओं पर लागू होगा।
  • ठेकेदारों को दी जाने वाली अग्रिम की वसूली तब प्रारंभ की जाएगी जब निष्पादित कार्य (executed work) का मूल्य मूल अनुबंध मूल्य का 15% तक पहुंच जाए और तब समाप्त होगी जब निष्पादित कार्य का मूल्य मूल अनुबंध मूल्य के 85% तक पहुंच जाएगा। प्रत्येक लेेखा बिल पर किस्तें यथाअनुपात आधार पर होंगे।
  • ठेकेदारों को दी जाने वाली अग्रिमों  के लिए ली जाने वाली बैंक गारंटी में स्पष्ट तौर से स्वीकृत अग्रिम का कम से कम 110% कवर होगा (जिसमें मूलधन और ब्याज कवर हो)।
  • ठेकेदार द्वारा अनुबंध में तय समय सीमा में कार्य समाप्त नहीं किए जाने के कारण होने वाले नुकसान को परिनिर्धारित नुकसानी (Liquidated Damages) कहते हैं।
  • परिनिर्धारित नुकसानी (Liquidated Damages) 0.5% प्रति सप्ताह या 2% प्रति महीना की दर से वसूल किया जाता है लेकिन अधिकतम 10% वसूल किया जा सकता है।(भंडार के मामले में)
  • ठेकेदार को ठेका-बाह्य सामग्री(materials outside the contracts) जारी की जाती है तो उसकी पावती रसीद पर क्रम संख्या डाल उसकी तीन प्रतियां तैयार की जाती है।
  • किसी ठेके के बारे में ठेकेदार और रेलवे के बीच कोई विवाद हो तो ठेके की शर्तों के अनुसार मामला पंचायत(Arbitration) के लिए भेज दिया जाना चाहिए एवं वहां सभी पंच निर्णय स्टैंप ड्यूटी अधिनियम के अनुसार इस स्टैंप पेपर पर किए जाएंगे।
  • ठेको के कारण कोई कानूनी कार्रवाई करने से पहले महाप्रबंधक की स्वीकृति ले ली जानी चाहिए जो ऐसे मामलों में अपने कानूनी और वित्त सलाहकार के परामर्श से काम करेगा।
  • ठेके की शर्तों में परिवर्तन या ठेके को समाप्त करने का निर्णय ठेके पर हस्ताक्षर करने वाले प्राधिकारी से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।
  • वह पुस्तिका जिसमें ठेकेदारों के द्वारा सारा माल जो आपूर्ति किया जाता है अथवा जो कार्य संपादित किया जाता है और जो माल ठेकेदार की रेल प्रशासन द्वारा कार्य के संबंध में दिया जाता है का लेखा जिस पुस्तिका में दर्ज किया जाता है उसे नापतोल या नपाई पुस्तिका(Measurement Book) कहते हैं।
  • ठेकेदारों द्वारा किए गए कार्यों के लिए बिलों का भुगतान नपाई पुस्तिका के आधार पर ही किया जाता है।

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