Book Keeping
Difference between
वर्किंग एक्सपेंस | वर्किंग एक्सपेंडिचर | |
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1. | वर्किंग एक्सपेंस कार्यालय की प्रतिदिन के खर्चों को कहते है। | वर्किग एक्सपेंडीचर फैक्टरी के खर्च को कहते है। |
2. | यह अप्रत्यक्ष खर्चे है। | यह प्रत्यक्ष खर्चे है। |
3. | यह लाभ-हानि खाते में नामे होता हैं। | यह व्यापार खाते में नामे होता है। |
शेयर | डिबेंचर | |
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1. | किसी कंपनी की पूंजी को बराबर-बराबर हिस्सों में विभाजित किया जाता है तथा हरेक हिस्से को शेयर कहते है। | किसी कंपनी के ऋण को कई हिस्सों में विभाजित किया जाता है तथा हरेक हिस्से को डिबेंचर अथवा ऋण पत्र कहते है। |
2. | इन पर लाभांश दिया जाता है। | इन पर ब्याज दिया जाता है। |
3. | इन पर लाभांश तभी दिया जाता है जब कम्पनी को लाभ हो। | इन पर ब्याज दिया जाना आवश्यक होता है चाहे लाभ हो या ना हो। |
4. | कम्पनी बंद होने पर इन्हें डिबेंचरो के बाद पैसा मिलता है। | कम्पनी बंद होने पर इन्हें शेयरो से पहले पैसा मिलता है। |
इकहरी लेखा प्रणाली(Single Entry System) | दोहरी लेखा प्रणाली(Double Entry System) | |
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1. | इसमें केवल व्यक्तिगत खाते रखे जाते है। | इसमें व्यक्तिगत खाते, वास्तविक खाते(real account), नाममात्र(nominal A/C) के खाते सभी खोले जाते है। |
2. | इसमें लेन देन के दोनों पहलुओं का लेखा नहीं किया जाता है। | इसमें लेन देन के दोनों पहलुओं का लेखा किया जाता है। |
3. | इसमें अन्तिम खातो को तैयार नहीं किया जाता है। | इसमें अन्तिम खातों को तैयार किया जाता है। |
4. | यह विधि वैज्ञानिक नहीं है। | यह विधि वैज्ञानिक है। |
तलपट या परीक्षा- सुची(Trial Balance) | तुलनपत्र या स्थिति विवरण(Balance Sheet) | |
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1. | इसका उद्देश्य खातों की गणितीय शुद्धता की जांच करना है। | इसका उद्देश्य व्यापार की वित्तीय स्थिति का ज्ञान प्राप्त करना है। |
2. | इसमें लाभ हानी का ज्ञान नहीं होता है। | तुलनपत्र में लिखी गई पूंजी में शुद्ध लाभ या हानि का लेखा किया जाता है। अतः इससे लाभ -हानि का ज्ञान हो सकता है। |
3. | इसके लिए अन्तिम स्टाॅक या रहतिया का मूल्यांकन जरूरी नहीं है। | इसके लिए अन्तिम स्टाॅक या रहतिए का मूल्यांकन जरूरी है। |
4. | यह खाता बही के समस्त खातों के शेष की सूची है तथा एक तरफ डेबिट तथा दूसरी तरफ क्रेडिट शेष लिखा जाता है। | इसमें एक तरफ दायित्व तथा दूसरी तरफ संपत्ति को लिखा जाता है। |
5. | इसे बनाना अनिवार्य नहीं है। | इसे बनाना अनिवार्य है। |
6. | इसे समयोजन प्रविष्टियों के पूर्व बनाया जाता है। | इस समयोजन प्रविष्टियों के बाद ही बनाया जाता है। |
7. | इसे न्यायलय में प्रमाण के रूप में नहीं मानता है। | इसे न्यायलय प्रमाण के रूप में मानता है। |
व्यक्तिगत लेखा | निजी लेखा | |
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1. | यह वे लेखे है जो कि व्यापारी व्यापार के लेनदारो व देनदारो के बारे में जानकारी रखने के लिए करता है। | यह व्यापारी का अपना खाता है जो व्यापार में पूंजी तथा लाभ हानि का लेखा बताता है। |
2. | हर व्यक्तिगत खाता निजी खाता नहीं होता है। | यह एक तरह का व्यक्तिगत खाता है। |
पूंजीगत व्यय(Capital Expenditure) | स्थगित लाभगत व्यय(Deferred Revenue Expenditure) | |
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1. | जो व्यय किसी सम्पत्ति को खरीदने में किया जाता है पूंजीगत व्यय कहलाता है। | जिस व्यय का लाभ कई वर्षों तक प्राप्त होता है उसे स्थगित लाभगत व्यय या डैफर्ड राजस्व व्यय कहते है। |
2. | इसे तुलनपत्र में दिखाते है तथा इन पर मूल्य ह्रास लगाया जाता है। | इसका लाभ प्राप्ति के अनुरूप हिस्सा लाभ हानि खाते में नामे किया जाता है तथा बाकी खर्चे को तुलनपत्र में दिखाया जाता है। |
3. | इसके उदाहरण भूमि, मशीनरी इत्यादि है। | इसके उदाहरण विज्ञापन आदि है। |
डूबते ऋण या अप्राप्य ऋण(Bad Debts) | संदिग्ध ऋण(Doubtful Debts) | |
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1. | ये वो डैब्टस है जो कि अप्राप्य हो चुके है तथा इनकी रिकवरी की संभावना खत्म हो चुकी है। | ये वो डैब्टस हैं जिनकी रिकवरी संश्यपुर्ण है। |
2. | इनको सीधे लाभ हानि खाते में नामे कर दिया जाता है। | इन्हें पूरा - पूरा लाभ हानि खाते में हस्तांतरित नहीं किया जाता वरण अंदाजे के अनुसार कुछ हिस्सों को नामे करते हैं। |
3. | यह तुलनपत्र में नहीं दिखाया जाता है। | इसे तुलनपत्र में देनदारो में से घटा कर दिखाया जाता है। |
पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) | आयगत व्यय या आगम व्यय या लागत व्यय (Revenue Expenditure) | |
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1. | पूंजीगत व्यय किसी स्थायी संपत्ति को क्रय करने अथवा इसके निर्माण करने के लिए किया जाता है। | आगम व्यय व्यवसाय के दिन - प्रतिदिन के संचालन के लिए किए जाते हैं। |
2. | पूंजीगत व्यय व्यवसाय की लाभोपार्जन क्षमता में वृद्धि करने के लिए किए जाते हैं। | आगम व्यय लाभोपार्जन क्षमता को वर्तमान स्तर तक बनाए रखने के लिए अर्थात संपत्तियों को कार्यकुशल दशा में बनाए रखने के लिए किए जाते हैं। |
3. | पूंजीगत व्ययो से प्रायः अनेक वर्षों तक लाभ प्राप्त होता रहता है। | आगम व्यय से अधिकतम एक वर्ष तक लाभ प्राप्त होता है। |
4. | पूंजीगत व्यय को स्थिति विवरण(Balance Sheet) में लिखा जाता है। | आगम व्यय को व्यापारिक खाता एवं लाभ हानि खाता में लिखा जाता है। |
5. | इस पर मूल्य ह्रास (Depreciation) लगाया जाता है। | इन पर मूल्य ह्रास नहीं लगाया जाता है। |
6. | पूंजीगत व्यय बार-बार ना होने वाली प्रकृति का होता है। | लाभगत व्यय बार-बार होने वाले प्रकृति का होता है। |
7. | ||
8. | इसके उदाहरण है - भूमि, मशीन आदि | इसके उदाहरण हैं- वेतन, विक्रम व्यय, कार्यालय व्यय आदि |
विनिमय पत्र (Bill of Exchange) | प्रतिज्ञा पत्र (Promissory note) | |
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1. | इसे ऋण दाता लिखता है | यह ऋणी द्वारा लिखा जाता है। |
2. | इसमें लेखक द्वारा भुगतान का आदेश दिया जाता है। | इसमें लेखक स्वयं भुगतान करने की प्रतिज्ञा करता है। |
3. | इसकी स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होता है। | इसके स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। |
4. | इसके तीन पक्षकार होते हैं - लेखक(Drawer), स्वीकत्तऻ(Drawee), प्राप्तकर्ता (Payee) | इसके केवल दो पक्षकार होते हैं - लेखक(Drawer or Maker) और प्राप्तकर्ता(Payee) |
5. | इसमें लेखक का भुगतान का दायित्व तभी आरंभ होता है जब स्वीकर्ता भुगतान ना करें। | इसमें लेखक का भुगतान का दायित्व सदैव बना रहता है। |
6. | मांग विनमय पत्र पर टिकट लगाने की आवश्यकता नहीं है। | इसमें प्रत्येक दशा में टिकट लगाना आवश्यक है। |
7. | इसमें लेखक इसका प्राप्तकर्ता भी बन सकता है। | इसका लेखक इसका प्राप्तकर्ता नहीं बन सकता। |
8. | इसके अप्रतिष्ठित(dishonor) होने पर इसका आलोकन(noting) करा लेना चाहिए। | इसके आलोकन(noting) की आवश्यकता नहीं होती। |
9. | स्थानीय बिल की एक तथा विदेशी बिल की तीन प्रतियॉ तैयार की जाती है। | इसमें केवल एक प्रति तैयार की जाती है चाहे यह देशी हो या विदेशी। |
ओरिजिनल इंट्री की किताब या रोजनामचा(journal) | अंतिम प्रविष्टि की पुस्तकें या खाता(ledger) | |
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1. | इसमें लेन- देन का संक्षिप्त ब्यौरा दिया जाता है। | इसमें ब्यौरा नहीं दिया जाता। |
2. | यह प्राथमिक बही है। | इसमें जर्नल से खैतानी(posting) की जाती है। |
3. | इसकी सहायता से अंतिम खाते नहीं बनाए जाते हैं। | इसकी सहायता से अंतिम खाते(व्यापारिक, लाभ-हानि एवं स्थिति विवरण) बनाया जाता है। |
4. | इन पुस्तकों में खाता बही का पन्ना नंबर (L.F.) लिखा जाता है। | खाता बही में जर्नल अथवा सहायक बहियों का पन्ना नंबर (J.F.) लिखा जाता है। |
5. | इन पुस्तकों की शुद्धता की जांच नहीं की जा सकती। | खाता बही के खातों की शुद्धता की जांच परीक्षा सूची (Trial Balance) बनाकर की जा सकती है। |
6. | इसमें लेन- देन को जैसे-जैसे वह होते रहते हैं तिथिवार लिखते रहते हैं। अतः इन पुस्तकों से किसी विशेष समय पर किसी विशेष खाते की स्थिति ज्ञात नहीं हो सकती। | इनमें लेन-देन को वर्गीकरण करके लिखा जाता है अर्थात एक विशेष खाते से संबंधित सभी लेन-देन खाताबही में एक ही स्थान पर होते हैं। |
7. | सभी लेन-देन की सबसे पहले प्रविष्टि इन्हीं पुस्तकों में की जाती है जैसे जर्नल, रोकड़ बही एवं अन्य बहियो में। क्योंकि लेन-देनो की प्रविष्टि सर्वप्रथम इन्हीं पुस्तकों में की जाती है अतः इन्हें प्रारंभिक प्रविष्टि की पुस्तकें भी कहते हैं। | जर्नल अथवा सहायक पुस्तकों में की गई प्रविष्टियों की बाद में खाता बही में खैतानी (posting) की जाती है। अतः इसे अंतिम प्रविष्टि की पुस्तक भी कहते हैं। |
तुलन पत्र(Balance Sheet) | लाभ हानि खाता(Profit and Loss Account) | |
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1. | इसमें परिसंपत्तियों तथा देयताए दिखाई जाती हैं। | इसमें आय तथा खर्चा दिखाया जाता है। |
2. | यह एक निश्चित तारीख को व्यापार की स्थिति प्रदर्शित करता है। | यह साल भर के कार्यों से प्राप्त लाभ या हानि को प्रदर्शित करता है। |
3. | तुलन पत्र खाता नहीं है। यह तो केवल एक विवरण है। | यह एक खाता है। |
4. | क्योंकि तुलन - पत्र केवल विवरण है। अतः इसमें शेषो को ले जाने के लिए इसी जर्नल प्रविष्टि की आवश्यकता नहीं होती। इन शेषो की वहां पर केवल नकल कर दी जाती है। | लाभ हानि खातों में शेषो को ले जाने के लिए जर्नल प्रविष्टि की जरूरत होती है जिसे अंतिम प्रविष्टि कहते हैं। |
5. | तुलन पत्र ऐसे शेषों की सूची है जिसको बंद नहीं किया जाता जैसे पूंजी खाता, भवन खाता आदि। | इसमें वे खाते आते हैं जिनका प्रयोग चालू वर्ष में ही कर लिया जाता है जैसे वेतन खाता, किराया खाता आदि। |
परक्राम्य पत्र(Negotiable Letter) | अपरक्राम्य पत्र(Non negotiable Letter) | |
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1. | यह हस्तांतरणीय होता है। | यह हस्तांतरणीय नहीं होता है। |
2. | इसमें प्राप्तकर्ता का नाम नहीं लिखा होता है। | इसमें साधारणतया प्राप्तकर्ता का नाम लिखा होता है। |
3. | इसके उदाहरण धारक चेक आदि है। | इसके उदाहरण रेखांकित चेक आदि है। |
उधार बिक्री | नकद बिक्री | |
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1. | इसके व्यापारी बिक्री की कीमत एक निश्चित अवधि के बाद प्राप्त करने को तैयार होता है। | इसके व्यापारी बिक्री की कीमत उसी समय प्राप्त करता है। |
2. | उधार बिक्री में व्यापारी द्वारा नकद छूट नहीं दिया जाता है। | इसमें नकद देने के लिए ग्राहकों को नकद/रोकड़ छूट देता है। |
3. | इसमें संशय पूर्ण देनदार के लिए संचय बनाया जाता है। | इसमें ऐसे संचय कि आवश्यकता नहीं होती है। |
4. |
क्रय बही | विक्रय बही | |
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1. | क्रय बही में उधार माल की खरीद का लेखा किया जाता है। | विक्रय बही में उधार माल की बिक्री का लेखा किया जाता है। |
2. | इसका शेष हमेशा डेबिट होता है। | इसका शेष हमेशा क्रेडिट होता है। |
3. | इसमें दूसरी पार्टी का खाता क्रेडिट किया जाता है। | इसमें दूसरी पार्टी का खाता डेबिट किया जाता है। |
4. | निश्चित अवधि के बाद इसका शेष क्रय खाता में हस्तांतरित कर दिया जाता है। | निश्चित अवधि के बाद इसका शेष विक्रय खाता में हस्तांतरित कर दिया जाता है। |
1. |
Appendix 2a
परिशिष्ट 2 परीक्षा
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